सिर्फ तुम्हारा (कविता संकलन)ः एम प्रिंस
प्रकाशकः स्वपन पब्लिकेशंस
मूल्यः 12 रुपये
द्वितीय संस्करणः 2003
सिर्फ तुम्हारा, एम. प्रिंस की विविध भाव-भूमि पर उपजी रचनात्मकता का आस्फालन है. जो उसके नये अंखुआए सपनों की झलक देती हैं, शामिल हैं. ये कविताएं पारदर्शी हैं और कवि कुछ भी छुपाकर नहीं रखना चाहता. यही इन कविताओं का धन-बिंदु है. प्रिंस में भविष्य की संभावना के बीज अवश्य छिपे हुए हैं इस पर उंगली नहीं उठाई जा सकती. ये कविताएं आपके लिए और आपकी ही सोच को उद्घाटित करती हैं. जाहिरन इन्हें स्वीकृति और दुलार देना भी आपही का दायित्व-कर्तव्य है.
प्रस्तुत कविता इसी संकलन से ली गयी है.
आखिर तुम भी तो लड़की हो
तुमने अपनी सखी से सुना
मैं घूम रहा था
विलिंग्टन स्ट्रीट पर
रख किसी लड़की के कंधे पर हाथ
झूमता जा रहा था मैं
उस लड़की के साथ
और तुमने तोड़ डाली
अपने पेन की नींब
तुम्हारी सखी ने कहा
मुझे चुम रही थी
एक औरत
और मैंने
अपना सिर टिका रखा था
उसके सीने से
तुमने फाड़ डाले मेरे सारे प्रेमपत्र
जब तुम्हारी सखी ने कहा
मैं गले मिल रहा था एक लड़की से
सिनेमा हाल के पास
और तुमने तोड़ डाला
मेरे फोटो फ्रेम को
हो गये थे उसके कई टुकड़े.
तुमने कुछ भी नहीं पूछा मुझसे
क्या पता तुम विश्वास भी करो मेरी बातों का
लेकिन कैसे कहूं
मैं अपनी छोटी बहन को लिए
बिलिंग्टन स्ट्रीट गया था
उसके जन्म दिन पर लेने केक
मेरी टीचर सिस्टर रोज ने चूमा था मुझे
बहुत दिनों बाद
मिला था मैं
अपने क्लासमेट जेनी से
उस दिन.
भला तुम
कैसे मानोगी यह सब
आखिर तुम भी तो एक लड़की हो
जानता हूं मैं
दुनिया की सारी लड़कियां
एक-सी होती हैं
भला तुम कैसे अलग हो सकती हो.
फिर भी तुम शायद मान भी जाओ
इन बातों को
लेकिन सोचो
कैसे जोड़ोगी
उस फोटो फ्रेम को
जिसके न जाने
कितने टुकड़े किये हैं तुमने
जिसे सीने से लगा कर
सोती भी थीं तुम
माना बदल सकती हो तुम कांच को
लेकिन तुम अपने
उस दिल का क्या करोगी
जिसको तुमने खुद तोड़ा है.